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जीवनी/आत्मकथा >> नानासाहब पेशवा

नानासाहब पेशवा

भवान सिंह राणा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6087
आईएसबीएन :81-288-1715-9

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प्रस्तुत है पुस्तक नान साहब पेशवा ......

Nana Sahab Peshva

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रसंग आने पर अनायास री पेशवा नानासाहब का स्मरण हो आता है। वह पदच्युत पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे, जिसकी मृत्यु पर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें अन्यायपूर्वक उनके सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया। इस पर उन्होंने अनुभव किया कि अपनी इसी नीति से अंग्रेजों ने समस्त भारत को दासता की श्रृंखलाओं में जकड़ लिया था। उन्होंने मातृभूमि की स्वाधीनता का संकल्प लिया। इसके परिणामस्वरूप भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम अस्तित्व में आया।

वह मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए जीवनपर्यन्त संघर्ष करते रहे। यद्यपि नानासाहब द्वारा प्रज्वलित क्रान्ति का उस समय दमन कर दिया, तथापि इसका यह अर्थ नहीं कि यह क्रांति सदा-सर्वदा के लिए समाप्त हो गई।
सत्य तो यह है कि नानासाहब के इसी कार्य से प्रेरणा प्राप्त कर भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का जन्म हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत स्वाधीन हुआ। उनके इस प्रयत्न के लिए भारत सदा उनका ऋणी रहेगा।

सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विषय में चर्चा करते ही सर्वप्रथम पेशवा नानासाहब का चेहरा आंखों के मध्य घूमने लगता है। पेशवा नानासाहब ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम सूत्रधार हैं। मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। असफलता के बावजूद भी उन्होंने भारतीय स्वाधीनता के इतिहास में जिस अध्याय की शुरूआत की वह अपने में अनविस्मणीय है। उस समय उनके द्वारा प्रज्वलित ज्योति को भले ही बुझा दिया गया पर इसका अर्थ यह नहीं था कि वह सर्वदा के लिए बुझ गई। बल्कि इस ज्योति की आँच ने ही भारत को स्वतंत्रता प्रदान की। इस पुस्तक में लेखक ने नानासाहब के जीवन चरित की अधिकतम सामग्री को संक्षिप्त रूप देने में सराहनीय प्रयास किया है।


दो शब्द


सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम आने पर अनायास ही पेशवा नानासाहब का स्मरण हो आता है। उनका मूल नाम गोविन्द था। उनके जन्मदाता पिता माधवरावजी नारायण भट्ट महाराष्ट्र की माथेरान पर्वत मालाओं के अन्तर्गत वेणू ग्राम के निवासी थे, जो पेशवाई की समाप्ति पर पदच्युत पेशवा बाजीराव द्वितीय के आश्रय में बिठूर गये थे, पेशवा पुत्रहीन थे। अत: उसने बालक गोविन्द को अपना दत्तक पुत्र बना लिया।

पेशवा की मृत्यु पर अंग्रेजी सरकार ने नानासाहब को अन्यायपूर्वक उनके सभी अधिकारियों से वंचित कर दिया। इस पर उन्होंने अनुभव किया कि केवल उन्हीं के साथ ऐसा नहीं हुआ था, अपनी हड़प नीति से अंग्रेजों ने समस्त भारत थे, जिसकी मृत्यु पर अंग्रेजी सरकार ने उन्हें अन्यायपूर्वक उनके सभी अधिकारों से वंचित कर दिया गया। इस पर उन्होंने अनुभव किया कि अपनी इसी नीति से अंग्रेजों ने समस्त भारत को दासता की श्रृंखलाओं में जकड़ लिया था। नानासाहब ने मातृभूमि की स्वाधीनता का संकल्प लिया, जिसके परिणामस्वरूप भारत का प्रथम स्वाधीनता संग्राम अस्तित्व में आया और प्राय: समग्र उत्तरी भारतभूमि को स्वाधीन कराने के लिए रणभूमि में उतर पड़ा।

यद्यपि अंग्रेजों ने इसे एक सैनिक विद्रोहमात्र कहकर महत्त्वहीन करने का प्रयत्न किया है, तथापि आज अनेक निष्पक्ष समीक्षक इसे भारत का प्रथम स्वाधीनता-संग्राम मानते हैं।

पेशवा नानासाहब मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए जीवन पर्यन्त संघर्ष करते रहे। इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली, यह एक भिन्न विषय है, किन्तु भारतीय स्वाधीनता के इतिहास में उन्होंने सर्वप्रथम जिस अध्याय की सर्जना की, वह अपने-आप में एक अविस्मणीय प्रेरक प्रसंग है। उस समय नानासाहब द्वारा प्रज्वलित इस क्रान्ति ज्योति का भले ही दमन कर दिया गया, फिर भी इसका यह अर्थ नहीं कि यह ज्योति सदा-सर्वदा के लिए बुझ गई, यह ज्योति बुझी नहीं, अपितु इसी से प्रेरणा पाकर भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का जन्म हुआ, जिसके परिणामस्वरूप भारत स्वाधीनता मिली। नानासाहब के इस प्रयत्न के लिए भारत सदा उनका ऋणी रहेगा।

पेशवा नानासाहब ही प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता-संग्राम के सूत्रधार थे। इसकी योजना उन्ही के बिठूर के महल में बैठकर बनाई गई थी। वीर तात्या टोपे, अजीमुल्लाखां, ज्वालाप्रसाद आदि अनेक परम विश्वासपात्र एवं सहयोगी थे। इन्हीं के सहयोग से उन्होंने इस क्रान्ति का प्रचार-प्रसार एवं कार्यान्वयन किया।
मुगल सम्राट बहादुरशाह इस क्रान्ति के नेता बनाये गये। और मुगलों की हरित पताका का विचार निश्चय ही नानासाहब की राजनीति दूरदर्शिता का परिचायक था। इस क्रान्ति का प्रचार-प्रसार जिस गोपनीयता का साथ किया गया, उसकी स्वयं अंग्रेज इतिहासकारों ने भी प्रशंसा की है।

इस छोटी सी पुस्तक में पेशवा नानासाहब के जीवन चरित की अधिकतम सामग्री को संक्षिप्त रूप मे देने का प्रयास किया गया है। पुस्तक के लेखन में श्रीयुत् (श्रीनिवास बालाजी हर्डीकर की पुस्तक 1857 का स्वाधीनता-संग्राम और तात्या टोपे, श्री बलवन्त पारसनीस की पुस्तक ‘महारानी लक्ष्मीबाई’, श्री विनायक सावरकर की पुस्तक ‘1857 का स्वतंत्रता युद्ध’ आदि साभार सहायता ली गई है।

भवानसिंह राणा

एक प्रारम्भिक जीवन


सन् 1857 की क्रान्ति भारतीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना है, जहां इसे अंग्रेजों ने एक सामान्य सैनिक विद्रोही घटना कहकर महत्वहीन घटना सिद्ध करने का प्रयत्न किया है; वहीं वीर विनायक दामोदर सावरकर जैसे इतिहासज्ञों ने अपने प्रबल प्रमाणों के आधार पर इसे अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारत का प्रथम स्वाधीनता-संग्राम है।
यह सत्य है कि यह क्रान्ति मेरठ, दिल्ली, कानपुर, अवध, रूहेलखण्ड, ग्वालियर, झांसी, बिहार, आदि स्थानों तक, अर्थात् प्राय: उत्तरी भारत तक ही सीमित रही और इसे शीघ्र ही दबा दिया गया। इसके साथ ही यह भी एक कटु सत्य है कि इतिहास में प्राय: विजेता का ही गुणगान किया जाता है। यथातथ्य का निरूपण करनेवाला इतिहास प्राय: उस समय सामने नहीं आ पाता। इसीलिए इस क्रान्ति की विफलता के बाद इसका वास्तविक स्वरूप तत्कालीन इतिहास की पुस्तकों में नहीं दिखायी देता।

सत्य सदा ही सत्य रहता है, फिर चाहे उसे उस समय असत्य सिद्ध करने वालों का भय समाप्त हो जाने पर घटनाएँ पुन: सत्य का अन्वेषण करा देती है।
आज अधिकांश विद्वान यह स्वीकार करने लगे हैं कि सन् 1857 की यह घटना वस्तुत: पराधीनता हेतु लड़ा गया प्रथम संग्राम था। इस संग्राम में पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्र नानासाहब, वीरवर तात्या टोपे, मुगल सम्राट बहादुरशाह, महारानी लक्ष्मीबाई, कुंवरसिंह आदि सत्ताच्युत देशी नरेशों जननायकों ने भाग लिया था। इस संग्राम के कर्णधारों ने बहादुरशाह को अपना नेता बनाया था, किन्तु क्रान्ति की रूपरेखा बनाने का मुख्य श्रेय वस्तुत: नानासाहब को ही जाता है। सत्य तो यह है कि यह उन्हीं के मस्तिष्क की उपज थी; वही इसके सूत्रधार थे।

जन्म

नानासाहब 1857 ई. को क्रान्ति के सर्वाधिक महत्वपूर्ण सेनापति थे। वह पदच्युत पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे ? उनका जन्म कहाँ हुआ था ? जनसामान्य इन समस्त प्रश्नों से प्राय: अपरिचित है।
महाराष्ट्र के चित्तपावन वंश में अनेकश: इतिहास प्रसिद्ध और देशभक्त महापुरुषों का जन्म हुआ है। मराठा साम्राज्य के प्रथम पेशवा बालाजी विश्वनाथ, महान राजनीतिज्ञ नाना फडनवीस, प्रसिद्ध क्रान्ति कारी वासुदेव बलवन्त फड़के और चाफेकर बन्धु, भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के अनेक नेता गोविन्द महादेव रानाडे, गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान्य तिलक, स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर आदि विभूतियों का जन्म इसी चित्तपावन वंश में हुआ। प्रस्तुत पुस्तक के चरितनायक स्वनामधन्य नानासाहब भी इसी वंश की सन्तान थे।

महाराष्ट् के माथेरान पर्वतमाला की नैसर्गिक शोभा अपने आप में अद्वितीय मानी जाती है। इसी पर्वतमाला में वेणूग्राम नामक एक छोटा-सा गाँव है। उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भिक वर्षों में वहां चित्तपावन ब्राह्मण वंश के एक व्यक्ति रहते थे- माधरावजी नारायण भट्ट। उनकी धर्म पत्नी का नाम श्रीमती गंगाबाई था, जिन्होंने 19 मई सन् 1825 ई. में एक बालक को जन्म दिया, जिसका नाम गोविन्द रखा गया। यही बालक आगे चलकर स्वतन्त्रता-संग्राम के सेनानायक नानासाहब के नाम से विख्यात हुआ।


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